बुरी तरह हुई पिटाई के बाद संता सिंह अस्पताल में भर्ती थे, और उनके सिर पर पट्टियां, हाथ-पैरों में प्लास्टर बंधे थे...
उनका मित्र बंता सिंह उन्हें देखने पहुंचा, और पूछा, "तुझे इतनी मार कैसे पड़ी, यार...?"
संता ने रुंआसे स्वर में जवाब दिया, "कुछ मत पूछ, यार... कल रात एक शादी में गया था, वहां नाच-गाने के दौरान मैं 'बोलियां' दे रहा था, एक 'बोली' गड़बड़ हो गई..."
बंता ने फिर पूछा, "ऐसी क्याबोली दे दी थी तूने...?"
संता ने कहा, "बारी बरसी खटनगया सी, खट के ले आंदा तार... भंगड़ा तां सजदा, जे नचे कुड़ी दा यार..."
बंता ने तपाक से कहा, "फिर तो मार पड़नी ही थी..."
अब संता के चेहरे पर मुस्कान आई, और बोला, "मुझे तो सिर्फ मार ही पड़ी है, दोस्त, लेकिन जो नाचा था, उसकी परसों उठावनी है.
उनका मित्र बंता सिंह उन्हें देखने पहुंचा, और पूछा, "तुझे इतनी मार कैसे पड़ी, यार...?"
संता ने रुंआसे स्वर में जवाब दिया, "कुछ मत पूछ, यार... कल रात एक शादी में गया था, वहां नाच-गाने के दौरान मैं 'बोलियां' दे रहा था, एक 'बोली' गड़बड़ हो गई..."
बंता ने फिर पूछा, "ऐसी क्याबोली दे दी थी तूने...?"
संता ने कहा, "बारी बरसी खटनगया सी, खट के ले आंदा तार... भंगड़ा तां सजदा, जे नचे कुड़ी दा यार..."
बंता ने तपाक से कहा, "फिर तो मार पड़नी ही थी..."
अब संता के चेहरे पर मुस्कान आई, और बोला, "मुझे तो सिर्फ मार ही पड़ी है, दोस्त, लेकिन जो नाचा था, उसकी परसों उठावनी है.
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